50वां खजुराहो नृत्य समारोह का दूसरा दिवस, कला की विभिन्न विधाओं का हुआ संगम
खजुराहो। मध्यप्रदेश शासन, संस्कृति विभाग एवं उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी के साझा प्रयासों और भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, मध्यप्रदेश पर्यटन विभाग एवं जिला प्रशासन — छतरपुर के सहयोग से यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल खजुराहो में विश्वविख्यात “50वां खजुराहो नृत्य महोत्सव” के दूसरे दिवस कला के विविध आयामों का संगम हुआ। इस अवसर पर संचालक संस्कृति श्री एन.पी. नामदेव, उप संचालक संस्कृति संचालनालय सुश्री वंदना पाण्डेय और निदेशक उस्ताद अलाउद्दीन खां संगीत एवं कला अकादमी श्री जयंत भिसे ने आमंत्रित कलाकारों का स्वागत पुष्पगुच्छ भेंट कर किया।
जहां एक ओर शाम के सौंदर्य के साथ मुख्य मंच पर नृत्य की बयार थी, तो प्रातः एवं अपराह्न में कलावार्ता में संगीत पर और लयशाला में नृत्य पर संवाद आयोजित हुए। प्रणति में वरिष्ठ चित्रकार श्री शंकर शिंदे के कल्पनाओं के रंग बिखरे। खजुराहो के विश्वप्रसिद्ध मंदिरों के आंगन में एक ऐसा सांस्कृतिक ताना—बाना बुना जा रहा है जिसकी स्मृतियां लंबे समय तक कलारसिकों के मानस में जीवित रहेंगी।
दिन नृत्य समागम के तहत चार प्रस्तुतियां दी गईं। इसमें सर्वप्रथम पंडित बिरजू महाराज के शिष्य श्री शेंकी सिंह, दिल्ली द्वारा कथक नृत्य की प्रस्तुति दी गई। उन्होंने प्रस्तुति का आरंभ गणेश वंदना से किया, जिसे लिखा और स्वरबद्ध पंडित बिरजू महाराज ने किया है। तत्पश्चात उन्होंने तीन ताल में कथक का नृत्य पक्ष दिखाया। उन्होंने अपनी प्रस्तुति को गजल — “आज उस शोख की चितवन को बहुत याद किया” पर नृत्य कर विराम दिया।
नृत्य प्रस्तुति के अगले क्रम में सुश्री सायली काणे, कलावर्धिनी डांस कंपनी, पुणे द्वारा भरतनाट्यम समूह नृत्य की प्रस्तुति दी गई। सबसे पहले उन्होंने हरि हर प्रस्तुति दी, जिसमें विष्णु भगवान के अवतार भगवान श्री राम को पुष्पांजलि अर्पित की, जिसे सुश्री अरुंधति पटवर्धन ने कोरियोग्राफ किया। इसके बाद अर्धनारीश्वर प्रस्तुति में दर्शाया की शिव—शक्ति मिलकर इस ब्रह्मांड का निर्माण, विनाश और पुनर्निर्माण करते हैं। वे शिव और शक्ति, पुरुष और प्रकृति स्वरूप हैं। इस प्रस्तुति को भी सुश्री अरुंधति पटवर्धन ने कोरियोग्राफ किया। तत्पश्चात राम नवरस श्लोक की प्रस्तुति दी गई, जिसमें भगवान श्री राम जीवन के विभिन्न दृश्यों के माध्यम से नौ रस और नौ भावनाओं को व्यक्त किया गया। देवी के बिना शिव अधूरे हैं, यही भाव अगली प्रस्तुति में व्यक्त किए गए। यह थिल्लाना राग रेवती में निबध्द् था।

अगली प्रस्तुति ओडिसी नृत्य की रही, जिसे प्रस्तुत किया सुश्री अरूपा गायत्री पांडा, भुवनेश्वर ने। उनकी पहली प्रस्तुति आइगिरी नंदिनी….रही। इसमें उन्होंने दिखाया कि शक्ति को स्वयं ब्रह्मांड माना जाता है – वह ऊर्जा और गतिशीलता का अवतार है और ब्रह्मांड में सभी कार्यों और अस्तित्व के पीछे प्रेरक शक्ति है। वह पूर्ण, परम देवत्व है। इसलिए देवी सूक्त में उन्हें सभी रूपों, अस्तित्व और चेतना में प्रकट बताया गया है।
चंडी या दुर्गा के रूप में वह दुष्टों का विनाश करती है और जो कुछ भी दिव्य है उसकी रक्षा करती है। दुर्गा ने महिषासुर का वध किया, यह दुर्गा की उग्र करुणा की शक्ति है। इसलिए, माता दुर्गा को महिषासुरमर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है – महिषासुर का वध करने वाली। अगली प्रस्तुति “मधुराष्टक” थी, यह पारंपरिक संस्कृत रचना भगवान कृष्ण की सुंदरता का गुणगान करती है। उनके होंठ, उनका चेहरा, उनकी आंखें और उनकी मुस्कान सभी खूबसूरत हैं। उनके चलने, खाने, बात करने और सोने के तरीके में सुंदरता है। इस सम्पूर्ण प्रस्तुति में कहानियां शामिल हैं : कृष्ण एक शिशु के रूप में, अपने दोस्तों के साथ गेंद खेलते हुए, मक्खन चुराते हुए, होली खेलते हुए, कालिया की हार। कृष्ण ब्रह्मांड की सारी सुंदरता पर शासन करते हैं। इस प्रस्तुति की कोरियोग्राफी पद्मश्री पंकज चरण दास ने की।
दूसरे दिवस की अंतिम प्रस्तुति सुश्री मनाली देव, श्रीगणेश नृत्य कला मंदिर, मुंबई की कथक समूह नृत्य की रही। उन्होंने सर्वप्रथम गणेश वंदना प्रस्तुत की, तत्पश्चात तीन ताल में नृत्य प्रस्तुत किया। श्रीराम भजन के साथ नृत्य प्रस्तुत करते हुए ईश्वर के प्रति अटूट आस्था और पवित्रता को दिखाया। अंत में तराना से अपनी प्रस्तुति को विराम दिया।
“कलावार्ता”
“50वां खजुराहो नृत्य महोत्सव” के दूसरे दिन 21 फरवरी, 2024 को प्रातः सर्वप्रथम “कलावार्ता” का सत्र आयोजित किया गया। इस अवसर पर सुप्रसिद्ध संगीतज्ञ श्री भुवनेश कोमकली मुख्य वक्ता रहे। इस अवसर पर उन्होंने कलारसिकों से संवाद करते हुए कहा की संगीत, नृत्य और चित्र एक—दूसरे के समान है। जिस प्रकार एक चित्रकार विभिन्न आकारों को देखता है, उस ही तरह एक संगीतज्ञ भी अपने संगीत को आकार की तरह देखता है। महान संगीतज्ञ कुमार गंधर्व चहुंओर संगीत को देखते थे। वे परम्परा को बिना छेड़े नए—नए प्रयोग करते थे। वे लोक जीवन से प्रभावित होकर भी बंदिशों की रचना करते थे। उन्होंने चित्र और नृत्यों से प्रभावित होकर भी बंदिशें रचीं। वे प्रकृति के बेहद करीब थे और ऋतुओं के आधार पर अपने घर में पेड़—पौधे लगाए तथा उनसे प्रभावित होकर बंदिशें भी बनाई। उन्होंने कहा कि मौजूदा समय में संगीत के क्षेत्र में भी कई तकनीकें आ गई हैं, लेकिन अभी तकनीक का दुरुपयोग अधिक और सदुपयोग कम हो रहा है। यदि यह तकनीक कुमार गंधर्व जी के समय में होती तो वे और भी कई चमत्कारी कार्य करते। कुमार गंधर्व जी प्रयोगों को बहुत महत्व देते थे वे लोक के बोलों को भी शास्त्रीय संगीत में लेकर आए और बंदिशें रचीं। इस अवसर पर कलारसिकों ने उनसे सवाल भी किए, एक सवाल के जवाब में श्री भुवनेश ने कहा कि घराना एक शिक्षण पद्धति है और यह हर एक संगीतज्ञ के लिए आवश्यक है। आवश्यक नहीं कि एक ही घराना सीखें, एक से अधिक घरानों की शिक्षा—दीक्षा भी ले सकते हैं।

“लयशाला”
अपराह्न के सत्र में 21 फरवरी, 2024 को लयशाला की प्रथम सभा सजी, जिसमें नृत्य गुरुओं के साथ शिष्यों का संगम हुआ। इस लयशाला में सर्वप्रथम सुप्रसिद्ध मोहिनीअट्टम नृत्यांगना सुश्री जयप्रभा मेनन, नई दिल्ली द्वारा मोहिनीअट्टम नृत्य के विविध आयामों पर संवाद किया गया। उन्होंने इसकी विशेषताओं जैसे लास्य, अधिपंखा, आंतोलिका, नृत्ता (मुद्रा), तत्वम एवं निरम पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि किसी भी नृत्य को उसके संचलन से पहचाना जाता है। नृत्य के लिए संगीत सबसे अहम अंग है।
तत्पश्चात जयपुर घराने के सुप्रसिद्ध कथक नर्तक श्री राजेंद्र गंगानी ने कथक पर संवाद किया और शिष्यों को इसके विभिन्न अंगों से परिचित कराया। उन्होंने सर्वप्रथम लय पर संवाद करते हुए कहा कि लय अति सुंदर क्रिया है जो हर चीज को स्थापित करती है, इसलिए हर चीज में लय आवश्यक है। इसके बाद मुद्राओं, कवित्त, कथक के कायदे पर बात की। श्री गंगानी ने बताया कि “जो कहा गया है वो कथक है, किया नहीं तो कथक नहीं।” कलाकार का अभ्यास ऐसा होना चाहिए कि पैर पर करें तो पैर बोलें, शोर न करें। अपनी शिष्याओं के साथ उन्होंने वंदना, दादरा, ठुमरी इत्यादि को बोलों पर कर प्रस्तुत किया।
लोकरंजन में कलाकारों ने 100 किलो फूलों से खेली ब्रज की होली
मध्यप्रदेश संस्कृति विभाग एवं जिला प्रशासन, छतरपुर, दक्षिण मध्य क्षेत्र सांस्कृतिक केंद्र, नागपुर के सहयोग से खजुराहो नृत्य समारोह परिसर में 20 से 26 फरवरी तक प्रतिदिन शाम 5:00 से पारंपरिक कलाओं के राष्ट्रीय समारोह लोकरंजन का आयोजन किया गया है, जिसके दूसरे दिन छत्तीसगढ़ का गेड़ी नृत्य, पंथी नृत्य एवं उत्तरप्रदेश के कलाकारों द्वारा होली, मयूर और चरखुला नृत्य की प्रस्तुति दी गई। इसकी शुरुआत सुश्री वंदना श्री एवं साथी, उत्तरप्रदेश द्वारा लठ मार होली, फूलों की होली, मयूर और चरखुला नृत्य से की गई। कलाकारों ने 100 किलो फूलों से होली खेले रघुवीरा…., ब्रज में खेले होरी रसिया…. जैसे गीतों पर प्रस्तुति दी। इसके बाद श्री दिनेश जांगड़े एवं साथी, छत्तीसगढ़ पंथी नृत्य की प्रस्तुति दी गई। पंथी छत्तीसगढ़ के सतनामी जाति का परम्परागत नाच है।अगले क्रम में श्री ललित उसेंडी एवं साथी, छत्तीसगढ़ द्वारा गेड़ी नृत्य की प्रस्तुति दी गई। मुरिया जनजाति के मुख्य पर्व-त्यौहार में नवाखानी, जाड़, जात्रा और सेषा प्रमुख हैं।
“प्रणति” एकल चित्र प्रदर्शनी : श्री शंकर शिंदे
मध्यप्रदेश के इंदौर शहर के प्रसिद्ध चित्रकार श्री शंकर शिंदे की एकल चित्र प्रदर्शनी भी “50वां खजुराहो नृत्य समारोह” में आयोजित की गई है। इस प्रदर्शनी में श्री शिंदे के 55 वर्षों का चित्रकला का अनुभव उनके द्वारा उकेरे गए रंग और आकार बयां कर रहे हैं। श्री शिंदे ने बताया कि इस प्रदर्शनी में 30 चित्र प्रदर्शित किए गए हैं, जो एक्रेलिक रंगों में उन्होंने उकेरे हैं, इनमें 20 अमूर्त, 4 सेमी फिगरेटिव और 6 लैंडस्केप हैं। श्री शिंदे ने बताया की बचपन की स्मृतियां मेरे चित्रों में होती हैं। चाहे वह पारंपरिक शैली के चित्रों की बड़ी—बड़ी आंखें हो या गणपति जी की झांकियों की स्मृतियां। अंतरमन की उथल—पुथल को रंग देकर कैनवास पर अमूर्त रूप में गढ़ देता हूं। श्री शंकर शिंदे ने खजुराहो, इंदौर, उज्जैन, महेश्वर और मांडव के लैंडस्केप यहां प्रदर्शित किए हैं।